Murma Jatra Mela Story in Hindi: पलायन आज की नहीं बल्कि सदियों की समस्या रही है. और इसी से जुड़ा है झारखंड का ऐसा मेला जिसे मुड़मा जतड़ा मेला (Murma Jatra Mela) कहा जाता है. लेकिन, यह समस्या उत्सव में कैसे बदल गया, जानना चाहिएगा?
Murma Jatra Mela Story in Hindi: पलायन आज की नहीं बल्कि सदियों की समस्या रही है. और इसी से जुड़ा है झारखंड का ऐसा मेला जिसे मुड़मा जतड़ा मेला (Murma Jatra Mela) कहा जाता है. लेकिन, यह समस्या उत्सव में कैसे बदल गया, जानना चाहिएगा?
तो चलिए चलते हैं सदियों पूर्व छोटानागपुर के इतिहास में…जब क्रूर मुगलों ने रोहतसगढ़ (अभी बिहार का रोहतास जिला) पर आक्रमण कर दिया था. वहां रह रहे उरांव समुदायों की हत्याएं की जाने लगी, जबरन धर्म परिवर्त्तन के लिए मजबूर किया जाने लगा. मजबूरन उन्हें गढ़ छोड़ कर सोन नदी के रास्ते भागना पड़ा.
भागते-भागते वे पहुंचे वर्त्तमान के पलामू और फिर पलामू से रांची नगरिया…लेकिन, यहां भी इनकी किस्मत बेरूखी निकली और मुड़मा में उरांव जनजाति का आमना-सामना हुआ मुंडा जनजाति से.
लेकिन, उनके पलायन की वजह जान मुंडा जनजाति के लोगों का दिल पसिझ सा गया और मुड़ाओं (मुखिया) ने उन्हें पश्चिम वन क्षेत्र की सफाई करके वहां रहने की अनुमति दे दी.
फिर क्या था उरांव जनजातीय समुदाय के 40 पाड़हा के लोग इस पलायन के बाद हुए ऐतिहासिक समझौते को उत्सव में बदल दिए. जिसकी देन है ‘मुड़मा जतरा’ मेला.
जी हां! आज भी मुंडा उरांव के स्वागत में और उरांव मुंडाओं के एहसान की गीत गाते हैं. पाहन ढोल, नगाड़ा, मांदर के थाप पर अन्य ग्रामीणों के साथ नाचते-गाते हैं.
और यह नाच-गान का मुख्य केंद्र बिंदु होता है वहां लगा ‘जतरा खूंटा’ जिसकी घंटों परिक्रमा की जाती है. कई एकड़ में झारखंड का सबसे बड़ा मेले का आयोजन किया जाता है.
तो दोस्तों आपको कैसी लगी झारखंड के मुड़मा जतरा की कहानी. ऐसी ही और कहानियों के लिए देखते रहें हमारा चैनल.